भारत का किसान अभाव में रहता है और अभावों में ही इस दुनिया से विदा होता है
आज दिनांक 05 .01 .2020 को नोएडा सेक्टर 40 के प्रीति चिन्तन भवन में आदर्श जाट सभा का दो दिवसीय चिंतन शिविर के समापन के अवसर पर,सेवा सदन के महामंत्री एवंम समाजिक चेतना को जागृत करने वाले गौभक्त चौधरी मंगलसिंह जी ने कहा कि ।
आदरणीय बन्धुओं
भारत का किसान अभाव में ही जीता है और अभाव में ही इस संसार से विदा ले लेता है
त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान । वह जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है । तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते ।
एक कहावत है कि भारत की आत्मा किसान है जो गांवों में निवास करते हैं । किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेज कर रखे हुए हैं । यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गांवों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है । किसान की कृषि ही शक्ति है और यही उसकी भक्ति है ।
हमारे देश में किसान आधुनिक विष्णु है । वह देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि दे रहा है लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है । प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभावों में ही गुजरा है । किसान मेहनती होने के साथ-साथ सादा जीवन व्यतीत करने वाला होता है ।
किसान ब्रह्ममुहूर्त में सजग प्रहरी की भांति जग उठता है । वह घर में नहीं सोकर वहां सोता है जहां उसका पशुधन होता है ।
उठते ही पशुधन की सेवा, इसके पश्चात अपनी कर्मभूमि खेत की ओर उसके पैर खुद-ब-खुद उठ जाते हैं । उसका स्नान, भोजन तथा विश्राम आदि जो कुछ भी होता है वह एकान्त वनस्थली में होता है । वह दिनभर कठोर परिश्रम करता है । स्नान भोजन आदि अक्सर वह खेतों पर ही करता है । सांझ ढलते समय घर लौटता है ।
कर्मभूमि में काम करने के दौरान किसान चिलचिलाती धूप के दौरान तनिक भी विचलित नहीं होता । इसी तरह मूसलाधार बारिश या फिर कड़ाके की ठंड की परवाह किये बगैर किसान अपने कृषि कार्य में जुटा रहता है । किसान के जीवन में विश्राम के लिए कोई जगह नहीं है ।
वह निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है । कैसी भी बाधा उसे अपने कर्तव्यों से डिगा नहीं सकती । अभाव का जीवन व्यतीत करने के बावजूद वह संतोषी प्रवृत्ति का होता है । इतना सब कुछ करने के बाद भी वह अपने जीवन की आवश्यकतायें पूरी नहीं कर पाता । अभाव में उत्पन्न होने वाला किसान अभाव में जीता है और अभाव में इस संसार से विदा ले लेता है ।
अशिक्षा, अंधविश्वास तथा समाज में व्याप्त कुरीतियां उसके साथी हैं अब समय आगया है कि किसान को इन परिस्थितियों से ऊपर उभरा जाए
किसान को अपनी कार्य शैली में कुच्छ परिवर्तन करना होगा
गौमाताओं को जीवन का अंग बनाना होगा गौमाताओं के दूध को प्रमुख उत्पाद ना मानकर ,गौगोबर एवंम गौमूत्र को सहेजना पड़ेगा ,गौगोबर एवंम गौमूत्र विज्ञान को समझना होगा ,खेतों में महंगे कीटनाशकों तथा रासायनिक खादों पर खर्च न करके गौमूत्र व गौगोबर से बने सस्ते व प्रभावकारी कीटनाशकों तथा जैविक खादों का प्रयोग करके ,जैविक उत्पाद पैदा करने होंगे ,जिस से उत्पादों का उचित मूल्य भी मिलेगा, खेती किसानी का खर्चा कम होगा ,अपने परिवार व समाज का स्वास्थ्य ठीक रहेगा ।
किसान की आमदनी में बढ़ोतरी होगी तो देश मे समर्द्धता आएगी ,
स्वस्थ्य समाज का निर्माण हो सकेगा ,
मीडिया प्रभारी रचना
सेवा सदन